Friday 23 September, 2011

लो हम हो गए शुरू !

अब भइया कभी-कभी लोग कुछ ऐसा भी कह जाते हैं जो सब के सामने नहीं कहना चाहिए, पर फिर भी कह जाते हैं. तो ऐसे लोगों के लिए हमने ये खटिया बिछाई है जो बोले बिना नहीं रह सकते. पर वो बेचारे भी क्या करें, एक आम (खाने वाला नहीं) आदमी केवल बोल ही तो सकता है, कुछ कर थोड़े ही सकता है. करतीं तो सरकारें, ऍम पी, ऐ मैले साहब हैं, और कमबख्त करने के बाद ठीक से धो के भी नहीं जाते. बदबू इतनी दूर तक जाती है की अमरीका से कोई "विक्की चीख" पड़ता है. लो फिर क्या! लगे एक दूसरे पे मढने! की भाई ये मैंने नहीं उसने किया है, उसने नहीं उसने किया है! यहाँ तक की घर के बूढ़े बुज़ुर्ग को भी नहीं बख्शा! कोई नहीं मिला तो उस पे ही इलज़ाम लगा दिया की इसी ने किया है. अरे भाई अगर बूढा बोल नहीं सकता तो ये मतलब तो नहीं की उसी को दोषी बना दो? बेचारे मंदबुधि सिंह की खामखा वाट लगा दी! खैर, किया किसी ने भी हो, साफ़ तो हम लोगों को ही करना होगा फिर चाहे रो के करो चाहे हँस के. 

तो लो हम हो गए शुरू ! 

No comments:

Post a Comment