Wednesday 28 September, 2011

Standing कमेटी

स्वर्गलोक के वित्तमंत्री अपने कार्य में मग्न थे की तभी वहां सूर्यदेव प्रकट हुए और बोले,"मंत्री जी आजकल इंधन के दामो में भारी उछाल आ रहा है जबकि यहाँ इंधन अभी भी सतयुग के रेट पर बिक रहा है जिस कारणवश हमें घाटा सहना पड़ रहा है. आप जल्द से जल्द पेट्रोल ते दाम मार्केट रेट पर ले आयें."

वित्तमंत्री हैरान परेशान अपना लैपटॉप खोल के गणना प्रारंभ कर देते हैं तभी वहां मेघराज का आगमन होता है. अब आप तो जानते ही हैं की सूर्यदेव और मेघराज में छत्तीस का आंकड़ा है, तो मंत्री जी भी आने वाले खतरे को भांप गये. मेघराज गरजे,"हमें अपने गुप्त सूत्रों से पता लगा है की आप सूर्यदेव के कहने पर पेट्रोल के दाम बढ़ाने वाले हैं. मंत्री जी ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए. यह हमारा आदेश है." कहते ही मेघराज ऐसे गायब हो गये जैसे चुनाव जीतने के बाद नेता.

अब बेचारे वित्तमंत्री असमंजस में पड़ गये की आखिर करें तो क्या करें. उनकी हालत बिलकुल मनमोहन सिंह जैसी हो गयी, इधर कूआं उधर खाई. तभी जैसे इश्वर को उनकी हालत पे तरस आ गया हो, उनकी समस्या के समाधान के लिए नारद जी पधारे. मंत्री जी ने अपनी समस्या ऋषिपुत्र के सामने बखान की. 

नारद मुनि बोले,"अरे! इसमें परेशान होने वाली क्या बात है? यह तो मृत्युलोक में भारतवर्ष में रोज़ का काम है और इसका उनके पास सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ हल भी है!"
"वह क्या?" मंत्री जी उत्सुकता से बोले.
"भई दो चार देवगण इक्कठे कर के एक Standing कमेटी बिठा दीजिये"
"मुनिवर! ये कैसे कमेटी है जो Standing रहते हुए बिठानी है!",मंत्री जी चकित थे."यदि Standing है तो बिठाऊँ कैसे और यदि बिठानी है तो Standing कैसे रहेगी?"
"आप नाम पे मत जाइये, भारतवर्ष में तो चलने फिरने वाली चीज़ को गाडी कहते हैं. आप बस बिठा दीजिये और उनपर पेट्रोल के दाम तय करने की ज़िम्मेदारी सौंप दीजिये"
"पर मुनिवर जब वे पेट्रोल के ने दाम सुझा देंगे तब क्या?" मंत्रीजी आदतानुसार फिर चिंतित हो उठे.
"अरे भोले मंत्री जी, कमेटी तो केवल बैठने के लिए बिठाई जाती है, नतीजे निकलने के लिए नहीं. वो कमेटी ही क्या जो नतीजे निकले. और फिर कमेटी आपने बनाई है, आप उसके सुझाव मानने के लिए बाध्य नहीं हैं. आप चाहें तो उसके बाद एक और नयी Standing कमेटी फिर बिठा सकते हैं"

बस वो दिन गया और ये दिन गया, तब से स्वर्गलोक में पेट्रोल के दाम नहीं बढे. 

और एक हम हैं, यहाँ हर ऐरे-गैर काम के लिए Standing कमेटी बिठा दी जातीं हैं, एक बस महंगाई बढ़ाने के लिए ही यह काम नहीं किया जाता :(

Tuesday 27 September, 2011

३२ रुपये

योजना अयोग्य प्रस्तुत करता है, अपनी नयी मूवी की कुछ झलकें :

निर्माता : श्री मंदमोहन सिंह 

निर्देशक : मोंटी सिंह प्याजअलूवालिया 

अभिनेता : डोगविजय सिंह, काफ़िर सिब्बल 

अभिनेत्री : सोनिया आंधी



Scene 1

डोगविजय सिंह: आज मेरे पास नौकर चाकर हैं, गाडी है, बैंक बैलेंस है. तुम्हारे पास क्या है?

काफ़िर सिब्बल: मेरे पास ३२ रुपये हैं.



Scene 2

सोनिया आंधी: ३२ रुपये की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू, एक आमिर के जेब का राज़ होते हैं ३२ रुपये.

Sunday 25 September, 2011

अख्तर की पतंग

हमारे पडोसी अख्तर साहब को आजकल पतंगबाजी का शौंक चढ़ा है. वो पतंग पे इतनी लम्बी डोर छोड़ रहे हैं कि किसी से लपेटे नहीं जा रही है. पतंग डोर का भार नहीं संभाल पा रही है और बार बार गिरे जा रही है. उस पर उनका कहना की मैंने सचिन की पतंग काट दी, मैंने शाहरुख़ की पतंग काट दी, उनकी बाली उम्र को दर्शाता है. अब चूंकि सचिन जी उनसे पेंच नहीं लड़ा पाते, भई अख्तर साहब की पतंग उड़े तो सही पहले, इसलिए अख्तर साब ने धौंस जमानी शुरू कर दी की सचिन जी उनसे डरते हैं. अमा मियां, तुम्हारी शक्ल देख के तो तुम्हारे अपने बच्चे तुम से डर जाएँ, सचिन जी की क्या बिसात है.

चलिये सचिन, शाहरुख़ डरे हों या न हों, अख्तर साब न सही, उनकी पतंग ज़रूर मशहूर हों गयी है. 

Saturday 24 September, 2011

नाई या कसाई?

सरकारी नाई ने बाल काटते समय अपने सिब्बल साहब से पूछा: साहब यह स्विस बैंक वाला क्या लफड़ा है?
सिब्बल चिल्लाये : अबे तू बाल काट रहा है या इन्क्वारी कर रहा है?
नाई खिसियाया : सॉरी अब नहीं पूछूँगा

अगली बार नाई ने अपने चिददु साहब से पूछा: यह काला धन क्या होता है? पुराने गले सड़े नोट को कहते हैं क्या?
चिददु जी भी चिल्लाये और बोले : तूँ हमसे ये सवाल क्यूँ पूछता है?

लो जी, अगले दिन नाई से पूछताछ की लिए सी बी आई की टीम आ धमकी!
"क्या तुम बाबा या अन्ना के एजेंट हो?" उन्होंने पूछा
नाई बोला : "नहीं साबजी"
"तो फिर तुम बाल काटते वक़्त नेताओं से फालतू के सवाल क्यूँ करते हो?" अफसर साहब गरजे 
नाई बोला : "साहब ना जाने क्यूँ स्विस बैंक और काले धन के नाम पर इन सबके बाल खड़े हो जाते है और मुझे बाल काटने में आसानी हो जाती है....इसलिए पूछता रहता हूँ" 0_o 

Friday 23 September, 2011

Satya Vachan

करेक्टर ढीला

अखबार में खबर क्या छपी "सी बी आई चिदम्बरम के खिलाफ जांच को तैयार नहीं" की ए राजा गाने लगा : "मै करूं तो साला करेक्टर ढीला है!"

लो हम हो गए शुरू !

अब भइया कभी-कभी लोग कुछ ऐसा भी कह जाते हैं जो सब के सामने नहीं कहना चाहिए, पर फिर भी कह जाते हैं. तो ऐसे लोगों के लिए हमने ये खटिया बिछाई है जो बोले बिना नहीं रह सकते. पर वो बेचारे भी क्या करें, एक आम (खाने वाला नहीं) आदमी केवल बोल ही तो सकता है, कुछ कर थोड़े ही सकता है. करतीं तो सरकारें, ऍम पी, ऐ मैले साहब हैं, और कमबख्त करने के बाद ठीक से धो के भी नहीं जाते. बदबू इतनी दूर तक जाती है की अमरीका से कोई "विक्की चीख" पड़ता है. लो फिर क्या! लगे एक दूसरे पे मढने! की भाई ये मैंने नहीं उसने किया है, उसने नहीं उसने किया है! यहाँ तक की घर के बूढ़े बुज़ुर्ग को भी नहीं बख्शा! कोई नहीं मिला तो उस पे ही इलज़ाम लगा दिया की इसी ने किया है. अरे भाई अगर बूढा बोल नहीं सकता तो ये मतलब तो नहीं की उसी को दोषी बना दो? बेचारे मंदबुधि सिंह की खामखा वाट लगा दी! खैर, किया किसी ने भी हो, साफ़ तो हम लोगों को ही करना होगा फिर चाहे रो के करो चाहे हँस के. 

तो लो हम हो गए शुरू !